कोरोना हाहाकार मचा रहा है। अस्पतालों में बेड नहीं हैं। जहां बेड हैं वहां वेंटीलेटर तथा बाईपेप की सुविधा नहीं है। जिन अस्पतालों में मरीज भर्ती हैं, उन्हें समय पर रेमेडिसिविर इंजेक्शन तथा ऑक्सीजन नहीं मिल रही। कोरोना अब उम्र नहीं देख रहा। बच्चों से लेकर बूढ़े तक इसके शिकार हो रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि चार दिन में ही संक्रमण फेफड़ों तक पहुंच रहा है। पिछली बार संक्रमण के दस दिन बाद लंग्स में जितना संक्रमण होता था, नया स्ट्रेन चार दिन में ही उस स्थिति में पहुंचाए दे रहा है। कोरोना के फैलने की गति पिछली लहर की तुलना में तीन गुनी तेज है। पिछले साल एक संक्रमित मरीज जहां तीन अन्य को संक्रमित कर रहा था, अब संक्रमित मरीज नौ नए लोगों को संक्रमित कर रहा है।
प्रशासन ने विगत दिवस कई नए प्राइवेट अस्पतालों में कोविड के इलाज की सुविधा शुरू की। कल शाम तक यह सभी अस्पताल फुल हो गए थे। यशवंत हॉस्पीटल के निदेशक डॉ. एसएस भागौर ने बताया कि उनके यहां सभी तीस बेड एक दिन में ही भर गए। जो मरीज भर्ती हो रहे हैं, वे लंग्स गंभीर संक्रमण के शिकार हैं। संक्रमण बच्चों से लेकर बूढ़ों तक में एक जैसा दिखाई दे रहा है। दो दिन के संक्रमण के बाद ही सीटी कराने पर 20 से 40 प्रतिशत लंग्स संक्रमित दिखाई दे रहे हैं। रेमेडिसिविर इंजेक्शन के अभाव में ऐसे मरीजों का इलाज करने में काफी परेशानी आ रही है।
रेनबो हॉस्पीटल के क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ डॉ. रनवीर त्यागी मरीजों की तेजी से बढ़ती संख्या को देखकर चिंतित हैं। रवि हॉस्पिटल का कोविड वार्ड फुल हो गया है। जो मरीज उनके पास आ रहे हैं, वे गिड़गिड़ा रहे हैं। डॉ. त्यागी ने बताया कि कल एक 29 वर्षीय युवक कोरोना से पीड़ित उन्हें दिखाने आया। चार दिन पहले खांसी तथा बुखार हुआ था। उसका सीटी कराने पर उसके लंग्स 75 प्रतिशत संक्रमित नजर आए। सीटी देखने पर यह संक्रमण लंग्स के बाहर की ओर से अंदर की ओर फैलता दिखाई देता है। यह कोविड का लक्षण है। डॉ. त्यागी का कहना है कि पंचायत चुनाव समाप्त हो गया है। इस चुनाव के दौरान जो लापरवाहियां बरती गई हैं, उसका नतीजा आने वाले चार दिन में देखने को मिलेगा।
प्रशासन ने दो दिन पहले पारस हॉस्पीटल में कोविड के इलाज की सुविधा शुरू करायी थी। यहां भी सारे बेड फुल हैं। कल रात इस अस्पताल में व्हील चेयर पर, स्ट्रेचर पर लेटे मरीज ऑक्सीजन लेते दिखाई दे रहे थे। स्पर्श मल्होत्रा अस्पताल में भी बेड नहीं है। प्रशासन एक ओर दावा कर रहा है कि बेड की कमी नहीं है। दूसरी ओर मरीज अस्पताल दर अस्पताल भटक रहे हैं।
ज्वेलर्स तथा गहनों के कारीगर हो रहे सर्वाधिक संक्रमित
कोरोना की इस लहर में ज्वेलर्स तथा ज्वेलरी बनाने का काम करने वाले कारीगर कुछ ज्यादा ही चपेट में आ रहे हैं। पास-पास बैठकर पायल का काम करने वाले कारीगर तथा शोरूम पर ग्राहकों को आभूषण दिखाने वाले सेल्समेन, शू निर्माता, चिकित्सक तथा सरकारी अधिकारी सर्वाधिक कोरोना की सर्वाधिक चपेट में आ रहे हैं। इसका प्रमुख कारण इनकी लोगों से आए-दिन होने वाली मुलाकात है।
कोरोना की जांच कर रही शहर की सभी प्रमुख पैथोलॉजी के आंकड़ों में ज्वेलर्स, उनका स्टाफ तथा सोने व चांदी के कारीगर इस लहर की चपेट मे सर्वाधिक आ रहे हैं। इसका प्रमुख कारण सोने-चांदी की दुकानों पर ग्राहक का आभूषण को छूकर देखना है। हर ग्राहक हाथ में जेवर लेकर उसके वजन का अनुमान करता और डिजाइन देखता है। कुछ महिलाएं तो आभूषण को शोरूम पर ही पहनकर देखती हैं। यदि उन्हें छूने से मना किया जाए तो वे आभूषण खरीदेंगी ही नहीं। आभूषण पर सेनेटाइजर छिड़कने की भी परंपरा नहीं है। ज्वेलर्स को लगता है कि इससे कहीं आभूषण की चमक पर कोई अंतर न आए। यही कारण है कि ग्राहक से सेल्समैन तथा सेल्समैन से दुकान मालिक तक यह संक्रमण आसानी से पहुंच रहा है।
अंजना टॉकीज स्थित पीसी ज्वेलर्स के प्रयांक वार्ष्णेय का कहना है कि उन्होंने अपने स्टाफ को ग्लब्स व मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया है ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। दूसरा प्रमुख टारगेट वर्ग सोने-चांदी का काम करने वाले कारीगर हैं। पायल बनाने वाले कारीगर सर्वाधिक कोरोना की चपेट में आ रहे हैं। इसका प्रमुख कारण पूरी पायल किसी एक कारीगर के द्वारा न बनाया जाना है। यह पायल विभिन्न कारीगरों द्वारा ठेके पर बनायी जाती हैं। कोई घुंघुरू डालता है तो कोई लॉक। ज्वेलर के यहां से कारीगर अपने घरों पर ये पायल ले जाते हैं तथा अपने हिस्से का काम करके वापस कर देते हैं, जहां से वही पायल दूसरे कारीगर के घर तक पहुंच जाती है। इस प्रकार यदि एक कारीगर संक्रमित है तो वही संक्रमण कई कारीगरों के घरों तक पहुंच जाता है।
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